Monday, January 11, 2016

जिंदगी यूंहीं बेकार मिटाने की चीज नहीं...आत्महत्या कोई समाधान नहीं

जिंदगी हंसने गाने के लिए है पल दो-पल”, जी हां, किशोर कुमार की आवाज में हिन्दी फिल्म ज़मीर का ये गाना हमें जिंदगी को सही मायने में जीने का तरीका सिखाता है। ये गाना हमें बताता है कि हंसते-गाते जीने से जिंदगी कितनी हसीन और आसान हो जाती है।
लेकिन आज की आधुनिक होती जीवनशैली और बढ़ती महत्वकांक्षाओं का बोझ युवाओं पर इस कदर हावी होने लगा है कि खुदको पिछड़ा हुआ पाने पर उनमें निराशा इस कदर घर कर जाती है कि उनसे जीने का हक छीन लेती है। यूं तो निराशा कभी भी और किसी को भी अपना शिकार बना सकती है मगर एक सर्वे के मुताबिक 19 से 29 साल के युवाओं में मौत का दूसरा सबसे बड़ा कारण आत्महत्या है और बीते दस साल में इस उम्र के युवाओं में आत्महत्या के मामले 200 प्रतिशत तक बढ़े हैं।
 इस बारे में ओशो ने ये कहा है कि, तुम आत्महत्या क्यूं करना चाहते हो? हो सकता है कि जिंदगी वैसी नहीं चल रही जैसा तुम चाहते हो। लेकिन तुम जिंदगी पर आपना तरीका अपनी इच्छा थोंपने वाले होते कौन हो? हो सकता है तुम्हारी इच्छाएं पूरी न हुईं हों। तो तुम खुद को खत्म क्यूं करते हो? अपनी इच्छाओं को खत्म करो। ऐसे लोगों को ये समझना चाहिए कि उनकी वर्तमान समस्या स्थाई नहीं है यानी जो आज है वो कल नहीं रहेगा।
 तभी तो मशहूर हास्य कवि काका हाथरसी ने भी कहा है कि
परमात्मा ने आत्मा बख़्शी है श्रीमान ।
करे आत्महत्या उसे समझो मूर्ख महान ॥
समझो मूर्ख महान बुरे दिन वापस जाएँ ।
अटल नियम है दु:ख के बाद सुखानन्द आएँ ॥
जैसा काका ने बताया कि दुख के बाद सुख जरूर आता है यानी परिर्वत प्रकति का नियम है। लेकिन कुछ लोग इस नियम की तरफ ध्यान न देकर आत्महत्या का जानलेवा कदम उठा लेते हैं।
हममें से कई लोग अपनी जिंदगी मुसीबतों से लड़कर या तो काट लेते हैं या फिर हथियार डालकर अपनी जिंदगी की डोर खुद ही काट लेते हैं, यानी खुदकुशी कर बैठते हैं। इसे अंग्रेजी में कहें तो- सुइसाईड कर लेते हैं। उनके दिमाग में नकारात्मक विचार कुछ इस तरह घर कर जाते हैं कि उनमें जीने की चाह खत्म हो जाती है। ऐसे लोगों को अपनी जिंदगी, उस धूप की तरह लगने लगती है जिसकी तपिश में खाक होकर ही वो खुद को बचा पाने का हल ढूंढते हैं यानी आत्महत्या का रास्ता अख्तियार कर लेते हैं और छोड जाते हैं अपने पीछे ढेरों ऐसी संभावनाएं जो उन्हें जीने के बेहतर विकल्प दे सकती थीं।
अब सवाल ये कि आखिर ऐसे लोगों को कैसे पहचाने जिनमें आत्महत्या के विचार घर करने लगते हैं। इस बारे में वर्ल्ड ब्रेन सेंटर, दिल्ली के मनोचिकित्सक डॉ. नीलेश तिवारी बताते हैं कि आत्महत्या के पीछे मानसिक, सामाजिक, साइकोलॉजिकल, बॉयोलॉजिकल और जेनेटिक कारण होते हैं।इनमें डिप्रेशन, एंग्जाइटी, नशे की लत, आवेगी स्वभाव, कर्ज, प्यार में असफलता, परिवार से अलगाव, हीन भावना और किसी भी तरह का नुकसान वगैरह शामिल हैं। इस बारे में डॉ तिवारी बताते हैं कि,ऐसे लोगों में हर काम के लिए दिलचस्पी का कम होना, अकेले और खोए-खोए रहना, चिड़चिड़ापन, भूख की लगातार कमी आदि लक्षण देखने में आते हैं। ये कारण उन कुछ लोगों को यही सोचने पर मजबूर करते हैं कि उनके जीवन में अब कुछ और नहीं बचा सिवाय आत्महत्या के। उन्हें जिंदगी का मोल नशे की कुछ गोलियों, फांसी के फंदे, अपने शरीर को नुकसान पहुंचाने, जहर जैसी कोई चीज खाने-पीने या इसी तरह के किसी काम में दिखने लगता है। दरअसल, ऐसे लोग मानसिक और भावनात्मक रूप से कमजोर होते हैं।
ऐसे लोग मुसीबतों पर पार पाने के लिए आत्महत्या को ही एकमात्र विकल्प के रूप में क्यूं देखते हें? क्यूं ऐसे लोग ऊपर वाले की दी इस खूबसूरत नेमत को जी नहीं पाते  और अपनी सांसों की डोर खुद ही तोड लेते हें। डॉ. तिवारी के मुताबिक, आत्महत्या का विचार किसी के भी दिमाग में तुरंत ही नहीं आता बल्कि इसके लक्षण कुछ दिन या कुछ घंटों पहले नजर आने लगते हैं। जिन लोगों के मन में आत्महत्या के विचार आते हैं, उन्हें और कोई विकल्प नजर नहीं आता। उस वक्त मौत ही उनकी दुनिया के दायरे में घूमती दिखाई देती है। आत्महत्या करने के उनके विचार इतने मजबूत होते हैं, कि उन्हें कम करके नहीं आंका जाना चाहिए। ऐसे विचार वास्तविक, मज़बूत और तात्कालिक होते हैं। इनका कोई चमत्कारिक उपाय नहीं होता।
तो  क्यों  ना  ज़िन्दगी को  ख़त्म  करने के  बजाये  उसे  बदल  दें, क्यूंकि आत्महत्या अक्सर एक अस्थायी समस्या का स्थायी समाधान होता है। ऐसे अधिकतर लोग जिस समय आत्महत्या करने की सोचते हैं, उसके कुछ समय बाद जीवित रहने की इच्छा रखते हैं। उनका कहना होता है कि वे मरना नहीं चाहते - वे केवल अपनी पीड़ा को मारना चाहते हैं।
अगर ऐसे मानसिक रोगियों के बारे में बरती जाने वाली सावधानियों के बारे में बात की जाए तो इस तरह के लक्षण दिखते ही तुरंत उसका इलाज कराएं। ऐसे मानसिक रोगी की सोच को सकारात्मक दिशा में ले जाते हुए उसकी लगातार काउंसिलग करें। साथ ही जरूरी है कि एक योग्य मनोचिकित्सक से संपर्क करें क्योंकि हो सकता है कि इलाज में देरी मरीज के जीवन पर भारी पड़ जाए। डॉ नीलेश तिवारी के मुताबिक, जब किसी के मन में आत्महत्या के विचार आते हैं तो उसे अपनी भावनाओं के बारे में तुरंत किसी व्यक्ति से बात करनी चाहिए। जिन लोगों के मन में आत्महत्या के विचार आते हैं, उन्हें अकेले ही स्थिति का सामना करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। उन्हें तुरंत किसी मनोचिकित्सक की सहायता लेनी चाहिए। साथ ही इन बातों का भी ध्यान रखें:-
- 6-8 घंटे की नींद लें और देर रात तक जगना छोड़े।
- पौष्टिक भोजन करें और खाने में फल और सब्जी मिलाएं।
- अपना लक्ष्य निर्धारित करें और उसको पाने के लिए ध्यान केंद्रित करें।
- शराब और सिगरेट को ना कहें। यह तनाव कम नहीं करते, बढ़ाते हैं।
- परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताए।
इसके अलावा:-
- दवाईयां और दवाई का पर्चा रोगी की पहुंच से दूर रखें।
- रोगी के पास कोई भी खतरनाक हथियार न हों।
- रोगी के साथ कोई न कोई अटेंडेंट जरूर रहे।
- रोगी को भावनात्मक रूप से मजबूत करें।
- उसे रचनात्मक कार्यों में लगाएं।
- उसे जीने का महत्व समझाएं।
- उसे अकेला न छोड़ें।
अगर आप समय रहते रोगी के लक्षणों की पहचान करके उसका समाधान शुरू कर देते हैं तो निश्चय ही आप जिंदगी के एक बुझते दीए को फिर से रौशन होने में सहायता करते हैं। यानी आप एक खत्म होती जिंदगी को सहारा देकर किनारे पर ला सकते हैं।

अनिल शर्मा अंजल